ढूंढ मैं हारा मेरे सतगुरू, मिला न दरश तुम्हारा

ढूंढ मैं हारा मेरे सतगुरू, मिला न दरश तुम्हारा

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ढूंढ—ढूंढ मैं हारा सतगुरू, मिला न दरश तुम्हारा ।
ढूंढ—ढूंढ मैं..........................

रामेश्वर जगदीश द्वारिका, बद्रीनाथ केदारा ।
काशी मथुरा और अयोध्या, ढूंढा गिरि गिरनारा ।।
ढूंढ—ढूंढ मैं..........................

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, भटका सब संसारा ।
अरसठ तीरथ में फिरि आया, दरश हेतु बहु बारा ।।
ढूंढ—ढूंढ मैं..........................

जप—तप व्रत—उपवास किये बहु, संयम—नियम अचारा ।
भई न भेंट, न थे सपनेहुं में, अस कहां भाग्य हमारा ।।
ढूंढ—ढूंढ मैं..........................

दिन नहीं चैन, रैन नहिं निद्रा, व्याकुल है तन सारा ।
अब तो धर्मदास की कीजै, दरशन दय भव पारा ।।

ढूंढ—ढूंढ मैं हारा सतगुरू, मिला न दरश तुम्हारा ।
ढूंढ—ढूंढ मैं..........................



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